बुधवार, 31 जुलाई 2013

खेलो की राजधानी

05 अक्तूबर 2010


खेलो की राजधानी

खेलों की राजधानी 



राष्ट्रकुल खेलों की धूम मची 



दुल्हन बन राजधानी है सजी 



प्रतियोगियों में होड़ है लगी 



वंदना में आरती है सजी । 



मुस्कान से भरा हुआ है शेरा 



साहस ,शक्ति , शौर्य , शेर - सा 



खिलाड़ियों का लगा है मेला 



जश्न , जोश , जीत की झड़ी है लगी । 





चुनौतियों से मंजिल है भरी 



प्रयास से सफलता मिलती 



स्वर्ण , रजत , कांस्य पदकों से 



जीत को ' मंजू ' ख़ुशी है मिलती । 



- मंजू गुप्ता , 



वाशी , नवी मुंबई । 


7 जन ने कहा है:

चैतन्य शर्मा ने कहा…
अरे वाह अपने तो हमारे देश में हो रहे खेलों को लेकर

कितनी सुंदर कविता बनाई..... मुझे तो बहुत ही अच्छी लगी
Manju Gupta ने कहा…
भाई चैतन्य जी ,
नमस्ते .

मेरा हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद .
रानीविशाल ने कहा…
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने .......आभार
नन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) ने कहा…
सुन्दर बाल कविता के लिए
मंजू गुप्ता जी को बधाई!
--
आपकी इस पोस्ट की चर्चा
बाल चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/21.html
Manju Gupta ने कहा…
आदरणीय गुरूजी मयंक जी ,
सादर नमस्ते .

आप के प्रेषित विचार मेरे लिए अनमोल हैं . धन्यवाद .
बाल चर्चा मंच से मुझे अवगत कराएं .मुझे इसकी जानकारी नहीं है .
प्रिय नन्ही -सी रानी .
असीम स्नेह .
आप के मनोभाव पढकर मेरी मुस्कान दुगनी हो गई .आभार .
माधव( Madhav) ने कहा…
लेट्स गो , जियो.. , उठो.., बढ़ो... , जीतो....
Manju Gupta ने कहा…
माधव जी ,
नमस्ते .
खेलों के लिए प्रेरणात्मक संदेश दिया ,आभार .
- See more at: http://nanhaman.blogspot.in/2010/10/blog-post_05.html#comment-form

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