बुधवार, 31 जुलाई 2013

नाव चली

05 जुलाई 2010


नाव चली



नाव चली 



काले बादल नभ में छाए 

ढम -ढम -ढम- ढम शोर मचाए 

देखो सूरज ! भी नजर न आए 

 दिन में भी अँधेरा  छाए ।



मौसम ने भी करवट ली 

सर -सर -सर - सर हवा चली 

रिमझिम -रिमझिम वर्षा हुई 

नदी - नालों में पानी भरे । 



नाव को ले कर बच्चे निकले 

नाव पानी में तैराई रे 

छप - छप -छप -छप नाव चली 

देख इसे सब हर्षाए रे । 



मंजू गुप्ता 




3 जन ने कहा है:

Sunil Kumar ने कहा…
एक अच्छी कविता समय के अनुसार
एक सुंदर रचना , बधाई
Amitraghat ने कहा…
"बहुत बढ़िया..."
Manju Gupta ने कहा…
सुनील जी ,अमितराघट जी ,

मेरा हौसला बढाने के लिए धन्यवाद .
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