रविवार, 21 मार्च 2010

सर्ग द्वितीय

द्वितीय सर्ग

जब भारत माता जकड़ी थी
पैरों में बेड़ियाँ पड़ी थीं
जहाँ सूरज अस्त न होता था
ब्रिटिश हुकूमत चलती थी ।

कहर गुलामी का बरसा था
१८५७ का विद्रोह कुचला था
कम्पनी सरकार थी हिल गई
गोरों का शासन चलता था ।

भेद भाव की नीति उनकी
फूट डालो की राजनीति थी
साम्राज्यवाद की चाल चली
भारत की आजादी छीनी ।

ऐसे गहन अंधकार में
भारत की पवित्र भूमि पर
ज्योति किरन थी चमकी
तब मिट्टी धरा की महकी ।

धुंधले भारत के आंगन में
नव खुशियों की हवा बही
तब शहनाई भी बजी थी
आया क्रान्ति दूत अवतारी ।

बंगा के जिले लायलपुर में
२८ सितम्बर १९०७ को
किशन -विद्यावती के गृह में
जन्मा था महावीर भगत सिंह ।

वीर भगत सिंह की देश भक्ति

प्रथम सर्ग
जल -धरा -हवा -आकाश - आग
जीवन के ये सारे हैं महातत्व
चलता इनसे चेतना में प्राण
प्रभु !बुद्धि का भर दो भंडार ।

करो कृपा हम पर करतार
दे दो बल - विद्या - ज्ञान अपार
स्पर्श -रूप -रस - गंध -शब्द से
हो जीवन में नव विद्या निर्धार ।

प्रभु ! अर्ज हमारी हो स्वीकार
न हो जीवन में ज्ञान अभाव
करें जग हितकर में सब काम
अहितकर में बुद्धि करे विराम ।







बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

रंगों की होली

उड़ा है अबीर मला गुलाल ,
हुआ शहर , नगर, गाँव लाल ,
गुजिया, मठरी की आई बहार ,
मिठाई का होली है त्यौहार .


आई है रंगों की होली ,
स्कूल से मिल गई छुट्टी ,
निकली बच्चों की घर से टोली ,
लाए हाथों में रंगों से भरी थैली .


लाल -पीले - हरे-गुलाबी-नीले,
घोला रंग पिंकी, शिनकी,राजू, आशु ने ,
भर -भर मारी पिचकारी एक दूजे पे,
हुए सब के चेहरे -कपड़े बदरंगे .


शिनकी पूछे आशु से ,
पिंकी! राजू !हैं कौन से,
नहीं पहचान में आ रहे,
मैत्री के रंगों से ये रंगे हुए .

जग में सबको मित्र बनाए ,
आपस में कभी न लडे-लड़ाए,
अपना -पराया ,भेद भाव मिटाए
"मंजू "संदेश प्यार का होली लाए

-मंजू गुप्ता