शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

मुक्तक

प्रेषिका -  मंजु गुप्ता 
वाशी , नवी मुम्बई .
भारत . 
मुक्तक 

माँ ! दिल मेरा न  तोड़ना 
 गलत राह पर न मोड़ना 
 कृपा मुझ पर बरसा के 
 रिश्ता ' मंजु ' से जोड़ना .   १ 


तेरे  द्वार  से खाली ना  जाऊँ 
आस्था का अंखड  दीप जलाऊँ
मँझधार में   नैय्या है  डोल रही 
कर कृपा माँ ! जीवन पार लगाऊँ . २ 

माँ ! जगत स्वार्थ के नशे में  चूर 
इंसान अब इंसानियत से दूर 
करती तुम सबके मनोरथ पूर्ण 
वर दे मुझको  ज्ञान - विवेक जरूर . 

गाँधी को करूं मैं प्रणाम

गाँधी को करूं मैं प्रणाम



गाँधी को करूं मैं प्रणाम ,

गाँधी में था हिन्दुस्तान ,

 पाना आजादी  था काम ,

 सत्य - अहिंसा था  नाम .

गाँधी को .....................

आधा नंगा आधा ढका ,

हाड़ -मांस का  दुबला - पतला ,
जीवन भर कभी न थका

दलित - दीन खातिर सम्मान  .

गाँधी को .....................

 स्वच्छ देश का था  अभियान ,

सामूहिक जीवन की जान ,

रघुपति राघव राजा राम ,

था उनका नित्य  प्यारा  गान।

गाँधी को .....................

अपनाके सादगी - सरलता ,

जन - मन को निज गले लगा ,  

' मंजु ' चरखे को   चला - चला ,

 दिया स्वाबलंबन  पैगाम .

गाँधी को .....................

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

साझा संसार: 53. गैर-बराबरी बढ़ाता आरक्षण

साझा संसार: 53. गैर-बराबरी बढ़ाता आरक्षण



 तार्किक कसौटी पर कसा सही जागरूक ज्ञान वर्ध्दक आलेख .

अंत में  आपके सुझाव भी सही लगे

बधाई जेन्नी जी .



मेरे विचार -





आरक्षण की आग



आरक्षण की आग से



देश सारा झुलस रहा



६५ सालों की आरक्षण की परिधि



बाँहें फैलाए पाँव पसार रही



जाति - धर्म की भांग खिलाके

योग्य प्रतिभाओं का हनन करे



जाति - धर्म भेद  की  दीवार खींच



अल्प ज्ञानी बाजी रहे मार



आरक्षण का जुल्म



प्रतिभाओं पर ना ढाओ



करें मंथन हम सब मिलके



करें पुनर्रचना समाज की



नीर - क्षीर विवेक से करें हल



विकसित देश भारत तभी बनेगा



आरक्षण पर कसे नकेल



योग्यिता बल  से करें विकास



करें देश का नव  निर्माण .



- मंजु गुप्ता

वाशी , नवी मुंबई

भारत .








मंगलवार, 15 सितंबर 2015

सहज साहित्य: आखर -आखर पढ़ मुझे

सहज साहित्य: आखर -आखर पढ़ मुझे

सहज साहित्य: आखर -आखर पढ़ मुझे

सहज साहित्य: आखर -आखर पढ़ मुझे



4-मंजु गुप्ता


दोहों की धड़कनों में हिंदी 

हिन्दी  की धड़कनों में बहे व्याकरण  धार। 
रस छंद अलंकार हैं कविता के  शृंगार।  

2
हिन्दी  अब वैश्विक हुई भारत  की पहचान।
विज्ञापन से बढ़ रही हिन्द की शक्ति - शान।   

3
अहिन्दी भाषी वास्ते किया इसे आसान।
राजभाषा हेतु गढ़ा सरल हिन्दी  विधान। 

4
एकता की भाषा है है राष्ट्र की जान।
चुनौतियों में चमकती हिन्दी  की पहचान। 

5
बसते कबीर - सूर के  हिन्दी  में हैं  प्राण।
जिस पर रीझ के मीरा नाची गा  के श्याम। 

सहज साहित्य: आखर -आखर पढ़ मुझे

सहज साहित्य: आखर -आखर पढ़ मुझे


4-मंजु गुप्ता
1  दोहों की धड़कनों में हिंदी 
हिन्दी  की धड़कनों में बहे व्याकरण  धार। 
रस छंद अलंकार हैं कविता के  शृंगार।  
2
हिन्दी  अब वैश्विक हुई भारत  की पहचान।
विज्ञापन से बढ़ रही हिन्द की शक्ति - शान।   
3
अहिन्दी भाषी वास्ते किया इसे आसान।
राजभाषा हेतु गढ़ा सरल हिन्दी  विधान। 
4
एकता की भाषा है है राष्ट्र की जान।
चुनौतियों में चमकती हिन्दी  की पहचान। 
5
बसते कबीर - सूर के  हिन्दी  में हैं  प्राण।

जिस पर रीझ के मीरा नाची गा  के श्याम।