गजल
आओ फिर से मिलकर लिखें देश की इबारत
रिश्तों के पृष्ठों पर बसे महोब्बत की नियामत .
दूषित मानसिकता का तम धरती पै छाया
संस्कारों की नींव पर खड़ी कर दें इमारत .
दुराचारियों ने लूटी है बेटी की लाज
गफ़लत की नींद में सोई हुई है सियासत .
लहू क्रांति का बहाकर के जगा देंगे सत्ता
शहतीर दंडों से हो आबरू की हिफाजत .
दामिनी की ज्वाला हर एक स्त्री में है जली
मिट्टी में नहीं मिलने देंगे उसकी शहादत .
काले दिन के जुल्मी दरिंदो को मिले फाँसी
महफूज रहें नारियाँ ' मंजू ' करे इबादत .
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