सोमवार, 7 जनवरी 2013

गजल






  गजल 


आओ फिर से मिलकर लिखें देश की इबारत
रिश्तों के पृष्ठों पर बसे महोब्बत की नियामत .

दूषित मानसिकता का तम धरती  पै छाया 
संस्कारों की नींव पर खड़ी कर दें  इमारत .

दुराचारियों ने लूटी है बेटी की लाज 
गफ़लत की नींद  में सोई हुई   है सियासत .

लहू क्रांति का बहाकर के जगा देंगे सत्ता  
शहतीर दंडों से हो आबरू की हिफाजत .

दामिनी की ज्वाला  हर एक स्त्री में  है जली 
मिट्टी में नहीं मिलने देंगे उसकी शहादत .

काले दिन के जुल्मी दरिंदो को मिले फाँसी 
महफूज रहें नारियाँ ' मंजू '  करे इबादत .

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