द्वितीय सर्ग
जब भारत माता जकड़ी थी
पैरों में बेड़ियाँ पड़ी थीं
जहाँ सूरज अस्त न होता था
ब्रिटिश हुकूमत चलती थी ।
कहर गुलामी का बरसा था
१८५७ का विद्रोह कुचला था
कम्पनी सरकार थी हिल गई
गोरों का शासन चलता था ।
भेद भाव की नीति उनकी
फूट डालो की राजनीति थी
साम्राज्यवाद की चाल चली
भारत की आजादी छीनी ।
ऐसे गहन अंधकार में
भारत की पवित्र भूमि पर
ज्योति किरन थी चमकी
तब मिट्टी धरा की महकी ।
धुंधले भारत के आंगन में
नव खुशियों की हवा बही
तब शहनाई भी बजी थी
आया क्रान्ति दूत अवतारी ।
बंगा के जिले लायलपुर में
२८ सितम्बर १९०७ को
किशन -विद्यावती के गृह में
जन्मा था महावीर भगत सिंह ।
रविवार, 21 मार्च 2010
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भारत माता के सच्चे सपूत को सादर श्रद्धांजलि और आपको धन्यवाद्.
जवाब देंहटाएंधुंधले भारत के आंगन में
जवाब देंहटाएंनव खुशियों की हवा बही
तब शहनाई भी बजी थी
आया क्रान्ति दूत अवतारी ।
Bahut sundar aur shandaar!
अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढकर
ब्लागजगत में आपका स्वागत है!अपने विचारों को लिखिए और दूसरों के विचार पढ़िए!आपके लेखन की सफलता हेतु मेरी शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
हुए थे वो वतन पे शहीद या कुर्बान हुए थे आज़ादी पे..??
जवाब देंहटाएंजूनून था वो मुल्क-परस्ती का या शौक़ था रूह की आज़ादी का..??
ना मालुम था उन्हें सिला अपनी इस दीवानगी का,
बका कहूँ इस कहानी को या फना कर दूँ जवानी को..??
औजस्वी कविता। बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआप सब विचारों से मैं गदगद हो गई . आभार .
जवाब देंहटाएंहाँ आप सब के लेखन को जरूर पढूंगी .
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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