प्रेषिका - मंजु गुप्ता
१. ऊनी वस्त्रों की
आई फिर से बहार
शीत ऋतु में .
२. पर्वों की शान
क्रिसमस मनाने
आया है जाड़ा.
३. अलाव तापें
गलियों - चौराहों पै
बेबस लोग .
४. कहर पाले
ने फसलों को मारा
तबाही मची .
५. चिल्ले जाड़े में
मचता खूब शोर
हाय रे ठंडी !
६. सन्निपात सी
करती जगत को
घातक ठंडी .
७. सर्द हवाएँ
चीरती तन- मन
देती सजाएँ.
८. बेदर्द शीत
में सुन्न उर द्वार
तुम न लौटे .
९. अतिथि बन
के गजक - रबड़ी
आती घरों में .
१० शीत लहरें
संग लाती सौगातें
सर्दी - खाँसी की .
११. विदा बेला ने
ठिठुरे दिसंबर
का जश्न रचा .
१२ . बर्फवारी की
चादर ओढ़कर.
सोई प्रकृति .
१३. रूई - सी बर्फ
बरसी निसर्ग पै
निखरा रूप .
माहिया - प्रकृति
१. प्रकृति बाला वीरान
पाले - ओले से
जग जीवन परेशान .
२. ठंड की आई सत्ता
बना आदमखोर
सूरज हुआ लापता .
तांका -
१. घने कोहरे
में धुंध की चादर
लपेटे ठंडी
अरमानों को लिए
पी रवि को ढूंढती .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें