रविवार, 23 दिसंबर 2012

हाइकु - जाड़े

हाइकु -  जाड़े 

प्रेषिका -  मंजु गुप्ता 

१. ऊनी वस्त्रों की 
आई फिर से बहार 
शीत ऋतु में .

२. पर्वों की शान 
क्रिसमस मनाने 
आया है जाड़ा.

३. अलाव तापें
गलियों - चौराहों पै 
बेबस लोग . 

४. कहर पाले 
ने  फसलों  को मारा 
तबाही मची .  

५. चिल्ले जाड़े में 
मचता खूब शोर 
हाय रे ठंडी  !

६. सन्निपात सी 
करती जगत को 
घातक ठंडी .

७. सर्द हवाएँ
चीरती तन- मन 
देती सजाएँ.

८. बेदर्द शीत 
में  सुन्न  उर द्वार 
तुम न लौटे .
 ९. अतिथि बन 
 के गजक - रबड़ी 
आती घरों में .

१० शीत लहरें 
संग लाती सौगातें 
सर्दी - खाँसी की .

११. विदा बेला  ने 
ठिठुरे  दिसंबर 
का जश्न रचा .

१२ . बर्फवारी की 
चादर ओढ़कर.
सोई प्रकृति . 

१३. रूई - सी बर्फ 
बरसी निसर्ग पै 
निखरा रूप .

माहिया - प्रकृति 

१. प्रकृति बाला वीरान 
पाले - ओले से 
जग जीवन परेशान .

२. ठंड की आई सत्ता 
बना आदमखोर 
सूरज हुआ लापता .

तांका -

१. घने कोहरे  
 में धुंध  की चादर 
लपेटे ठंडी 
अरमानों को लिए 
पी रवि को  ढूंढती . 


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