दोहों में मजदूर
जगत में ' मजदूर दिवस ' , एक मई को होय .
ऑफिसों - फैक्टरियों में , मिले छुट्टी हर कोय .
अनपढ़ हुए तो क्या हुआ , करते परिश्रम खूब .
सर्दी , गर्मी , वर्षा ऋतु में , काम में रहते डूब .
श्रम से ना दम फूलता , आता खूब स्वेद .
दिन - रात परिश्रम करके , भरते अपना पेट .
मानसिक - शारीरिक श्रम, में करे राष्ट्र भेद .
है श्रमिक का कम वेतन , ' मंजू ' होता खेद .
नहीं है सिर ढकने का , स्थल भी उनके पास .
बनाय औरों के लिए , घर , भवन , शहर खास .
न हो अगर संसार में , कोई भी मजदूर .
तो न होते महल - नगर , न ही ' ताज ' - सा नूर .
नहीं मिलती उन्हें इज्जत , न मिले हैं पुरस्कार .
ना ही हैं वस्त्र - आवास , ना आहार - विहार .
तन - मन का गम भुलाने , पिए लेता शराब .
बर्बाद होता परिवार , बेचे जो सरकार .
करते ' बाल - मजदूरी ' , सहते धुआँ - दुर्गंध .
बनाते धूप - अगरबत्ती , करें जग में सुगंध .
दुकान , ढाबा , घरों में , करें हैं बच्चे काम .
बचपन बूढा हो जाय , होय देश बदनाम .
करे जग इनका शोषण , मिलती गाली - मार .
छुट्टी पर काटे पगार , होते जब बीमार .
भटकते हैं इधर -उधर , होय कुसंग शिकार .
माफिया , डाकू बन के , करें हैं बलात्कार .
जीने के लिए करते , हाड़ - तोड़ वे काम .
ना मिलता शिक्षा - इलाज , होते वे लाचार .
बन्धुआ मजदूर बन के , चुकाते हैं लगान .
मानवता का हो रहा ,खुला घोर अपमान .
समस्या के लिए हल हो , ' बन्धुआ मुक्ति अभियान '
पुनर्वास की हो व्यवस्था , बने कठोर विधान .
नैतिकता - राष्ट्र हित में , सरकार होय ध्यान .
दे घर , स्कूल , सुविधाएं , राज्य बढ़ाए हाथ .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें